Thursday, November 1, 2012

शत रुद्रिय ( स्कन्द पुराण ) | Shat Rudriya from Skand Puran

शत रुद्रिय ( स्कन्द पुराण )

स्कन्द पुराण के अनुसार  जो प्रतिदिन प्रात:काल उठकर शत रुद्रिय का पाठ करेगा, उस पर प्रसन्न हो भगवान शिव उसे सभी मनोवाच्छित वर प्रदान करेंगे। पृथ्वी पर इससे बदकर पवित्र दूसरी कोई भी वस्तु नहीं है। यह सम्पूर्ण वेदों का रहस्य है। शतरुद्रिय का पाठ करने पर मन, वाणी और क्रिया द्वारा आचरित समस्त पापों का नाश हो जाता है। जो शतरुद्रिय का जप करता है, रोगातुर हो तो रोग रोग से छूट जाता है, कारागार में बंधा हुआ हो तो बंधन से छुटकारा पा जाता है और भयभीत हो तो भय से मुक्त हो जाता है। इन सौ नामों का उच्चारण करके जो विद्वान उतने ही फूलों द्वारा भगवान शिव की पूजा करता है और सौ बार उन्हें प्रणाम करता है, वह सब पातकों से मुक्त हो जाता है। ये सौ लिंग, सौ इनके उपासक और सौ इन लिंगों के नाम ये सभी सम्पूर्ण दोषों का नाश करने वाले माने गये हैं।
ब्रहमा जी भगवन शिव के सुवर्णमय लिंग की आराधना करके जगत्प्रधान (1) नाम का जप करते हुए अपने पद पर विराजमान हैं। श्री कृष्ण ने स्थल भाग में काले पत्थर का शिवलिंग स्थापित करके उर्जित (2) नाम से उसकी आराधना की है। सनकादि महाऋषियों ने अपने हृदय रुपी लिंग का
जगद्गती  (3) नाम से पूजन करके अपना अभीष्ट साधन किया है। सप्तऋषियों ने दर्भान्कुरमय लिंग का विश्व-योनिक (4) नाम से पूजन किया है। देव ऋषि नारद ने आकाश में ही शिवलिंग की भावना करके उसे जगत-बीज (5) नाम देकर उसकी आराधना करते हैं।
देवराज इंद्र वज्रमय लिंग की विश्वात्मा (6) नाम से पूजा करते हैं। सूर्यदेव ताम्रमय लिंग की पूजा और उसके विश्वसृज (7) नाम का जप करते हैं। चन्द्रमा मुक्तामय लिंग की उपासना और उसके जगत-पति (8) नाम का जप करते रहते हैं। अग्निदेव इन्द्रनीलमणि के शिवलिंग की पूजा करते हुए उसके विश्वेश्वर (9) नाम का जप करते हैं। ब्रहस्पति जी पुखराज मणि के शिवलिंग की आराधना और उसके विश्व-योनी (10) नाम का जप करते हैं। शुक्राचार्य विश्वकर्मा (11) नाम से प्रसिद्ध पद्मराग मणिमय शिवलिंग की उपासना करते हैं। धन्नाध्यक्ष कुबेर सुवर्णमय लिंग की पूजा और उसके ईश्वर (12) नाम का जप करते हैं। विश्वेदेवगण जगदगति (13) नाम से प्रसिद्ध रजतमय शिवलिंग की पूजा करते हैं। यमराज पित्तल के शिवलिंग की पूजा और उसकी शम्भु (14) नाम से उपासना करे हैं। वसुगण कांसे के शिवलिंग की आराधना और उसके स्वयम्भू (15) नाम का जप करते हैं। मरुद्गण त्रिविध लोहमय लिंग की पूजा और उमेश या भूतेश (16) नाम का जप करते हैं। राक्षस लोहमय लिंग की उपासना भूतभव्य भवोद्भव (17) नाम का जप करते हैं। गुह्यकगण शीशे के शिवलिंग की पूजा और योग (18) नाम का जप करते हैं। जैमिप्व्य मुनि ब्रह्मरन्ध्रमय शिवलिंग की उपासना और योगेश्वर (19) नाम का जप करते हैं। राजा निमि सबके युगल नेत्रों में ही शिवलिंग की भावना करके उसकी आराधना करते और शर्व (20) नाम जपते रहते हैं। धन्वन्तरि सर्वलोकेश्वर (21) नाम से प्रसिद्ध गोमय लिंग की उपासना करते हैं। गन्धर्वगण लकड़ी के शिवलिंग की पूजा और उसके सर्वश्रेष्ठ (22) नाम का जप करते हैं। श्री रामचन्द्र जी ज्येष्ठ (23) नाम का जप करते हुए वैदूर्यमय शिवलिंग की पूजा करते हैं। बाणासुर मरकतमणिमय शिवलिंग की पूजा और वशिष्ठ (24) नाम की पूजा करता है। वरुण जी परमेश्वर (25) नाम से प्रसिद्ध स्फटिकमणिमय शिवलिंग की पूजा करते हैं। नागगण मूंगे के शिवलिंग की उपासना और लोक्त्र्यन्कर (26) नाम का जप करते हैं। सरस्वती देवी शुद्ध मुक्तामय शिवलिंग को पूजती और लोकत्र्याश्रित (27) नाम का जप करती हैं। शनिदेव शनिवार की अमावस्या को आधी रात के समय महिसागरसंगम में आवर्त (भंवर) मय शिवलिंग की पूजा और जगन्नाथ (28) नाम का जप करते हैं। रावण चमेली के फूलों का शिवलिंग बनाकर पूजा करता और सुदुर्जय (29) नाम का जप करता हैं। सिद्धगण मानसलिंग की उपासना और काममृत्युजरातिग (30) नाम का जप करते हैं। राजा बलि यज्ञमय लिंग की आराधना और उसके ज्ञानात्मा (31) नाम का जप करते हैं। मरीचि आदि मह्रऋषि पुण्यमय शिवलिंग की उपासना और ज्ञानगम्य (32) नाम का जप करते हैं। सत्कर्म करने वाले देवता शुभ कर्म मय लिंग को पूजते और ज्ञानज्ञेय (33) नाम का जप करते हैं। फेन पीकर रहने वाले महऋषि फेनिज लिंग की उपासना और सुदुर्विद (34) नाम का जप करते हैं। कपिल जी वरद (35) नाम का जप करते हुए बालुकामय शिवलिंग की पूजा करते हैं। सरस्वती पुत्र सारस्वत मुनि वाणी में वाणी की उपासना करते हुए वागीश्वर (36) नाम का जप करते हैं। शिवगण भगवान शिव के मूर्ती मय लिंग की उपासना करते हुए रूद्र (37) नाम का जप करते हैं। देवतालोग जाम्बू-नद सुवर्णमय लिंग की आराधना और शितिकण्ठ (38) नाम का जप करते हैं। बुद्ध कनिष्ठ (39) नाम का जप करते हुए शंखमय शिवलिंग की पूजा करते हैं। दोनों अश्विनीकुमार सुवेधा (40) नाम से प्रसिद्ध मृत्तिकामय ( पार्थिव ) शिवलिंग की पूजा करते हैं।  गणेश जी आटे का शिवलिंग बनाकर कपर्दी (41) नाम से उसकी उपासना करते हैं। मंगल मक्खन के शिवलिंग की कराल (42) नाम से उपासना करते हैं। गरुड जी ओदनमय शिवलिंग की हर्यक्ष (43) नाम से उपासना करते हैं। कामदेव गुड़ के शिवलिंग की रतिद (44) नाम से उपासना करते हैं। शचीदेवी लवणमय ( सैन्धव और सुंदर रूपमय ) शिवलिंग की आराधना और वभ्रुकेश (45) नाम का जप करती हैं। विश्वकर्मा प्रासादमय ( महल के आकर का ) शिवलिंग बनाकर याग्य (46) नाम से उसकी उपासना करते हैं। विभीषण धूलिमय शिवलिंग की पूजा और सुह्रित्त्म (47) नाम का जप करते हैं। राजा सगर वंशांकुरमय शिवलिंग की पूजा और संगत (48) नाम का जप करते हैं। राहू हींगमय लिंग की उपासना और गम्य (49) नाम का कीर्तन करते हैं। लक्ष्मी देवी लेप्य लिंग का पूजन तथा हरीनेत्र (50) नाम का जप करती हैं।


योगी पुरुष सर्वभूतस्थ लिंग की उपासना और स्थाणु (51) नाम का जप करते हैं। मनुष्य नानाविध लिंग का पूजन और पुरुष (52) नाम का जप करते हैं। नक्षत्र तेजोमय लिंग का पूजन तथा भग और भास्वर (53) नाम का जप करते हैं। किन्नरगण धातुमय लिंग का पूजन तथा सुदीप्त (54) नाम का जप करते हैं। ब्रह्मराक्षसगण अस्थिमय लिंग का पूजन और देवदेव (55) नाम का जप करते हैं। चारणलोग दंतमय लिंग का पूजन और रंहस (56) नाम का जप करते हैं। साध्यगण सप्तलोकमय लिंग का पूजन और बहुरूप (57) नाम का जप करते हैं। ऋतुएँ दूर्वांकुरमय लिंग का पूजन और सर्व (58) नाम का जप करती हैं। अप्सराएं कुंकुम लिंग का पूजन और आभूषण (59) नाम का जप करती हैं। उर्वशी सिन्दूरमय लिंग का पूजन और प्रियवासन (60) नाम का जप करती हैं। गुरु ब्रम्हचारी लिंग का पूजन और उष्णीवी (61) नाम का जप करते हैं। योगनियाँ अलक्तक लिंग का पूजन और सुवभ्रुक (62) नाम का जप करती हैं। सिद्ध योगनियाँ श्रीखण्ड लिंग का पूजन और सहस्त्राक्ष (63) नाम का जप करती हैं। डाकिनियाँ मांसमय लिंग लिंग का पूजन तथा उसके सुमीढुष (64) नाम का जप करती हैं। मनुगण गिरीश (65) नाम से प्रसिद्ध अन्नमय लिंग का पूजन करते हैं। अगस्त्य मुनि व्रीहिमय लिंग का पूजन और सुशांत (66) नाम का जप करते हैं। देवल मुनि यवमय लिंग का पूजन और
पति (67) नाम का जप करते हैं। बाल्मीकि मुनि बाल्मीक लिंग का पूजन और चीरवासा (68) नाम का जप करते हैं। प्रतर्दन जी बाणलिंग का पूजन और हिरण्यभुज (69) नाम का जप करते हैं।   देत्यगण राई के शिवलिंग का पूजन और  उग्र (70) नाम का जप करते हैं। दानव लोग निष्पावज लिंग का पूजन और दिक्पति (71) नाम का जप करते हैं। बादल नीरमय लिंग का पूजन और पर्जन्य (72) नाम का जप करते हैं। यक्षराज माषमय लिंग का पूजना और भूतपति (73) नाम का जप करते हैं। पितृगण तिलमय लिंग का पूजन और वृषपति (74) नाम का जप करते हैं। गौतम मुनि गोधूलिमय लिंग का पूजन और गोपति (75) नाम का जप करते हैं। वानप्रस्थगण फलमय लिंग का पूजन वृक्षावृत (76) नाम का जप करते हैं। स्वामी कार्तिकेय पाषाण लिंग का पूजन और सेंनान्य (77) नाम का जप करते हैं। अश्वतर नाग धान्यमय लिंग का पूजन और उसके मध्यम (78) नाम का जप करते हैं। यज्ञकर्ता पुरुष पुरोड़ाशमय लिंग का पूजन और स्रुवहस्त (79) नाम का जप करते हैं। यम कालायसमय लिंग का पूजन और धन्वी (80) नाम का जप करते हैं। परशुराम जी यवान्कुरलिंग का पूजन तथा भार्गव (81) नाम का जप करते हैं। पुरुरवा घृतमय  लिंग का पूजन और बहुरूप (82) नाम का जप करते हैं। श्रीमान्धाता शर्करामय  लिंग की बाहूयुग (83) नाम से आराधना करते हैं। गायें पयोमय 'दुग्धमय' लिंग का पूजन और नेत्रसह्स्त्रक (84) नाम का जप करती हैं। पतिव्रता स्त्रियां भर्तृमय लिंग का पूजन और विश्वपति (85) नाम का जप करती हैं। न्र-नारायण मौज्ज़ीमय शिवलिंग का सहस्त्रशीर्ष (86) नाम से आराधन करते हैं। पृथु सहस्त्रचरण (87) नाम वाले ताक्षर्यलिंग का पूजन करते हैं। पक्षी सर्वात्मक (88) नाम से व्योमलिंग का पूजन करते हैं। पृथ्वी गन्धमय  लिंग का पूजन और उसके द्वितनु (89) नाम से जप करती है। पाशुपतगण भस्ममय लिंग का पूजन और उसके महेश्वर (90) नाम का जप करते हैं। ऋषि ज्ञानमय लिंग की चिरस्थान (91) नाम से उपासना करते हैं। ब्राह्मण ब्रम्हलिंग की ज्येष्ठ (92) नाम से उपासना करते हैं। शेषनाग गोरोचनमय  लिंग का पूजन और पशुपति (93) नाम का जप करते हैं। वासुकी नाग विषलिंग का पूजना और शंकर (94) नाम का जप करते हैं। तक्षक नाग कालकूटमय लिंग का पूजन और बहुरूप (95) नाम का जप करते हैं। कर्कोटक नाग हलाहलमय लिंग का पूजन और पिंगाक्ष (96) नाम का जप करते हैं। श्रृंगी विषमय लिंग का पूजन और धूर्जटी (97) नाम का जप करते हैं। पुत्र पितरिमय लिंग का पूजन और विश्वरूप (98) नाम का जप करता हैं। शिव देवी पारदमय लिंग का पूजन और त्र्यम्बक (99) नाम का जप करती हैं। मत्स्यादी जीव शस्त्रमय  लिंग का पूजन तथा वृषाकपि (100) नाम का जप करते हैं।

शत रुद्रिय ( स्कन्द पुराण ) ( संस्कृत )




7 comments:

  1. शतरुद्रिय अमूल्य है आपका सदर आभार - मयंक भारद्वाज

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  2. मेरे कारागार में 2 साल तक कंटिन्यू सुबह जल्दी उठकर नित्य पाठ करा था मुझे इसका फल मिला आज मैं बाहर अपना कृपा मायजीवन व्यतीत कर रहा हूं

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