Tuesday, December 17, 2013

समस्त प्राणियों की उत्त्पति का वर्णन || The Origin of This Universe

भविष्य पुराण > ब्राह्मापर्व > अध्याय १ - २ 

सुमन्तु मुनि पुण: बोले – हे राजन ! अब मैं भूतसर्ग अर्थात समस्त प्रणियों की उत्त्पति का वर्णन करता हूँ, जिसके सुनने से सभी पापों की निवृति हो जाती है और मनुष्य परम शांति को प्राप्त करता है.
हे तात ! पूर्व काल में यह सारा संसार अंधकार से व्याप्त था, कोई पदार्थ द्रष्टिगत नहीं होता था, अविज्ञेय था, अतर्क्य था और प्रसुप्त था. उस समय अतीन्द्रिय और सर्वभूतमय उस परब्रह्म भगवान भास्कर ने अपने शरीर से नानाविध सृष्टि करने की इच्छा की और सर्वप्रथम परमात्मा ने जल को उत्त्पन्न किया तथा उसमें अपने वीर्य रूप शक्ति का आधान किया. इससे देवता, असुर, मनुष्य आदि सम्पूर्ण जगत उत्त्पन्न हुआ. वह वीर्य जल में गिरने से अत्यंत प्रकाशमान सुवर्ण का अंड हो गया. उस अंड के मध्य से सृष्टिकर्ता चतुर्मुख लोकपितामह ब्रह्माजी उत्पन्न हुए.

Friday, December 13, 2013

रुद्राक्ष धारण की महिमा तथा उसके विविध भेदों का वर्णन

शिव पुराण > विद्येश्वर संहिता > अध्याय २५ >

     सूतजी कहते हैं – महाप्राज्ञ ! महामते ! शिवरूप शौनक ! अब मैं संक्षेप से रुद्राक्ष का महात्म्य बता रहा हूँ, सुनों. रुद्राक्ष शिव का भुत प्रिय है. इसे परम पावन समझना चाहिए. सुद्राक्ष के दर्शन से, स्पर्श से तथा उस पर जप करने से वह समस्त पापों का अपहरण करने वाला माना गया है. मुने ! पूर्वकाल में परमात्मा शिव ने समस्त लोकों का उपकार करने के लिए देवी पार्वती के सामने रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन किया था.
 

Monday, December 9, 2013

विषपान हेतु प्रजापतियों द्वारा भगवान शंकर की स्तुति

श्रीमद भागवत् पुराण > अष्टम स्कन्द > सातवाँ अध्याय >>


प्रजापतियों ने भगवान शंकर की स्तुति की – देवताओं के आराध्यदेव महादेव ! आप समस्त प्राणियों के आत्मा और उनके जीवनदाता हैं. हम लोग आपकी शरण में आये हैं. त्रिलोकी को भस्म करने वाले इस उग्र विष से आप हमारी रक्षा कीजिये.

सारे जगत को बाँधने और मुक्त करने में एकमात्र आप ही समर्थ हैं. इसलिए विवेकी पुरुष आपकी आराधना करते हैं. क्योंकि आप शरणागत की पीड़ा नष्ट करने वाले एवं जगदगुरु हैं. प्रभो ! आपकी गुणमयी शक्ति से इस जगत की सृष्टि, स्तिथि और प्रलय करने के लिए आप अनन्त, एकरस होने पर भी ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि नाम धारण कर लेते हैं. आप स्वयं प्रकाश हैं. इसका कारण यह है कि आप परम रहस्यमय ब्रह्मतत्व हैं. जितने भी देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि सत् अथवा असत् चराचर प्राणी हैं – उनको जीवनदान देने वाले आप ही हैं. आपके अतिरिक्त सृष्टि भी और कुछ नहीं है. क्योंकि आप आत्मा हैं. अनेक शक्तियों के द्वारा आप ही जगतरूप में भी प्रतीत हो रहें हैं. क्योंकि आप इश्वर हैं, सर्वसमर्थ हैं.

Tuesday, November 5, 2013

ध्रुव द्वारा भगवान् की स्तुति || Vishnu Stuti by Dhruva

विष्णु पुराण >> प्रथम अंश >> बारहवां अध्याय >>



ध्रुव ने कहा -- भगवन् ! आप यदि मेरी तपस्या से संतुष्ट हैं तो मैं आपकी स्तुति करना चाहता हूँ, आप मझे यही वर दीजिये [ जिससे मैं स्तुति कर सकूं ]. [ हे देव ! जिनकी गति ब्रह्मा आदि वेदज्ञजन भी नही जानते; उन्हीं आपका मैं बालक कैसे स्तवन कर सकता हूँ. किन्तु हे परम प्रभो ! आपकी भक्ति से द्रवीभूत हुआ मेरा चित आपके चरणों में स्तुति करने में प्रवृत हो रहा है. अत: आप इसे उसके लिए बुद्धि प्रदान कीजिये.


श्री पराशरजी बोले – हे द्विजवर्य ! तब जगत्पति श्री गोविन्द ने अपने सामने हाथ जोड़े खड़े हुए उस उत्तानपाद के पुत्र को अपने [वेदमय] शंख के अंत भाग से छू दिया. तब तो एक क्षण में ही वह राजकुमार प्रसन्न मुख से अति विनीत हो सर्वभूताधिष्थान श्री अच्युत की स्तुति करने लगा. 

Monday, November 4, 2013

अजामिल उपाख्यान में धर्म का निरूपण || Description of DHARMA in Story of Ajamil





भागवत पुराण > छठा स्कन्द > प्रथम व् द्वितीय अध्याय >>

भगवान के पार्षदों ने कहा – यमदूतों! यदि तुमलोग सचमुच धर्मराज के आज्ञाकारी हो तो हमें धर्म का लक्षण तथा धर्म का तत्व सुनाओ. दंड किस प्रकार दिया जाता है? दंड का पात्र कौन है? मनुष्यों में सभी पापाचारी दंडनीय हैं या उन में से कुछ ही?
 यमदूतों ने कहा – वेदों में जिन कर्मों का विधान किया गया है वे धर्म हैं और जिन का निषेद किया गया है वे अधर्म हैं. वेद स्वय भगवान के स्वरूप हैं. वे उनके स्वाभाविक श्वास और प्रश्वास और स्वयंप्रकाश ज्ञान हैं – ऐसा हमने सुना है. जगत के रजोमय, सत्वमय और तमोमय – सभी पदार्थ सभी प्राणी अपने परम आश्रय भगवान में ही स्थित रहते हैं. वेद ही उनके गुण, नाम कर्म और रूप आदि के अनुसार उनका यथोचित विभाजन करते हैं. जीव शरीर और मनोवृतियों से जितने कर्म करता है, उनके साक्षी रहते हैं – सूर्य, अग्नि, आकाश, वायु, इन्द्रियां, चन्द्रमा, संध्या, रात, दिन, दिशायें, जल, पृथ्वी, काल और धर्म. इनके द्वारा अधर्म का पता चल जाता है और तब दण्ड के पात्र का निर्णय होता है. पाप कर्म करने वाले सभी मनुष्य अपने अपने कर्मों के अनुसार दंडनीय होते हैं. निष्पाप पुरुषों! जो प्राणी कर्म करते हैं उनका गुणों से सम्बन्ध रहता ही है. इसीलिए सभी के कुछ पाप और कुछ पुण्य होते ही हैं और देह्वान होकर कोई भी पुरुष कर्म किये बिना रह ही नही सकता. इस लोक में जो मनुष्य जिस प्रकार का और जितना अधर्म या धर्म करता है, वह परलोक में  उसका उतना और वैसा ही फल भोगता है. देवशिरोमणियों ! सत्व, रज और तम – इन तीन गुणों के भेद के कारण इस लोक में तीन प्रकार के प्राणी दीख पड़ते हैं – पुण्यात्मा, पापात्मा और पुण्य – पाप दोनों से युक्त, अथवा सुखी, दुखी और सुख-दुःख दोनों से युक्त, वैसे ही परलोक में भी उनकी त्रिविधिता का अनुमान किया जाता है. 

Tuesday, October 29, 2013

ब्रह्मा आदि की आयु का वर्णन || The Age of Lord Brahma



Below is the text from VISHNU PURAN describing the age of our HINDU Deities...

 
प्रथम अंश >> तीसरा अध्याय > ब्रह्मा आदि की आयु का वर्णन>>>

श्री मैत्रेयजी बोले – हे भगवन ! जो ब्रह्म निर्गुण, अप्रमेय, शुद्ध और निर्मलात्मा है उसका सर्ग आदि का कर्ता होना कैसे सिद्ध हो सकता है?
श्री पराशरजी बोले – हे तपस्वियों में श्रेष्ठ मैत्रेय ! समस्त भाव पदार्थों की शक्तियाँ अचिन्त्य ज्ञान की विषय होती हैं; [उसमे कोई युक्ति काम नहीं देती] अत: अग्नि की शक्ति उष्णता के समान ब्रह्म की भी सर्गादि – रचना रूप शक्तियाँ स्वभाविक हैं. अब जिस प्रकार नारायण नामक लोक पितामह भगवान ब्रह्माजी सृष्टि की रचना में प्रवृत होते हैं सो सुनो. हे विद्वन ! वे सदा उपचार से ही उत्त्पन्न हुए कहलाते हैं. उनके अपने परिमाण से उनकी आयु सौ वर्ष की कही जाती है. उस [सौ वर्ष] का नाम "पर" है, उसका आधा परार्ध कहलाता है.