Thursday, August 16, 2012

अर्जुन द्वारा पन्चाप्रस तीर्थ में अप्सराओं का उद्धार


पूर्वकाल की बात है, अर्जुन तीर्थ यात्रा करते हुए दक्षिण समुन्द्र के तट पर यहाँ के पांच तीर्थों में स्नान करने के लिए आये. इन तीर्थों को भी के मारे सभी तपस्वी लोग छोड़ चुके थे और दूसरों को भी वहां जाने से मन करते थे. उनमें पहला "कुमारेश" है, जो मुनियोंको प्रिय है. दूसरा "स्त्म्भेश" तीर्थ है, जो सौभद्र मुनि का प्रिय है. तीसरा "व्र्क्रेश्वर" तीर्थ है, जो इंद्र पत्नी शचि को प्रिय लगता है. चौथा "महाकालेश्वर" तीर्थ है, जो राजा करन्ध्म को प्रिय है. इसी प्रकार पांचवा "सिद्धेश" नामक तीर्थ है, जो महाऋषि  भारद्वाज को प्रिय है. अर्जुन ने इन पाँचों तीर्थों का दर्शन किया जिन्हें तपस्वियों ने त्याग दिया था. अर्जुन ने नारद आदि महा ऋषियों का दर्शन करके उनसे पूछा - महात्माओं ! ये तीर्थ तो बड़े ही सुंदर और अद्भुत प्रभाव से युक्त हैं, तो बभी ब्रह्म वादी ऋषियों ने सदा के लिए इन का परित्याग क्यों कर दिया ?

Saturday, August 11, 2012

वसुदेव द्वारा श्री कृष्ण की स्तुति || Prayers by Vasudev


When Vasudeva saw his extraordinary son, his eyes were struck with wonder. Vasudeva could understand that this child was the Supreme Personality of Godhead, Nārāyaṇa. Having concluded this without a doubt, he became fearless. Bowing down with folded hands and concentrating his attention, he began to offer prayers to the child, who illuminated His birthplace by His natural influence. Below is the same Prayer translated in Hindi as well as in English...

श्रीमद भागवत पुराण >> दशम स्कन्द >> तीसरा अध्याय 
वसुदेव जी ने कहा -- मैं समझ गया कि आप प्रकृति से अतीत साक्षात पुरुषोत्तम हैं. आपका स्वरूप है केवल अनुभव और केवल आनन्द. आप समस्त बिद्धियों के एकमात्र साक्षी हैं. [[ १३ ]]
आप ही सर्ग के आदि में अपनी प्रकृति से इस त्रिगुणमय जगत की सृष्टि करते हैं. फिर उसमें प्रविष्ट ना होने पर भी आप प्रविष्ट के समान जान पड़ते हैं [[ १४ ]]

Friday, August 10, 2012

श्री कृष्ण जन्म || Birth of Krishna ( Vishnu Puran )

Wishing all readers a very Happy and Prosperous Janamashtmi... Here's the description of the birth of Shri Krishna as described in Vishnu Puran 



श्री विष्णु पुराण > पंचम अंश > तीसरा अध्याय >
श्री पराशर जी बोले - हे मैत्रेय ! देवताओ से इस प्रकार स्तुति की जाती हुई देवकी जी ने संसार की रक्षा के कारण भगवान पुन्द्रिकाक्ष को गर्भ में धारण किया [[१]] तदनन्तर सम्पूर्ण संसार रूप कमल को विकसित करनेके लिए देवकी रूप पूर्व संध्या में महात्मा अच्युत रूप सूर्य देव का आविर्भाव हुआ [[ २ ]] चन्द्रमा की चांदनी के सामान भगवान का जन्मदिन सम्पूर्ण जगत को आह्लादित करने वाला हुआ और उस दिन सभी दिशायें निर्मल हो गयी [[ ३ ]] 

Sunday, August 5, 2012

काल द्वारा शिव स्तुति ( स्कन्द पुराण ) || Shiv Stuti by Kaal


This Stuti relates to the story of Raja Shwet ( राजा श्वेत ) in the Skand Puran. 


"काल का विनाश करने वाले देवेश्वर, आप त्रिपुरासुर का संहार करने वाले हैं | प्रभो ! जगत्पते ! आपने कामदेव को जला कर उसे अंगहीन बना  दिया है; तथा आप ही ने अत्यंत अद्भुत ढंग से दक्ष - यज्ञ का विनाश कर डाला था | महान लिंगरूप से आपने तीनों लोकों को व्याप्त कर रक्खा है | सम्पूर्ण देवतों और असुरों ने सबको अपने में ली करने के कारण आपके स्वरूप लिंग कहा है | देवदेवेश्वर ! आपको नमस्कार है | विश्वमंगल ! आपको नमस्कार है | नीलकंठ रूप में आपको नमस्कार है | मस्तक पर जटा - जूट करने वाले ! आपको नमस्कार है | आप कारणों के भी कारण हैं ! आपको नमस्कार है | आप मंगलों के भी मंगल रूप हैं ! आपको नमस्कार है | बुद्धिहीनों के पालक ! आप ज्ञानियों के लिए भी ज्ञानात्मा हैं और मनीषी पुरुषों के लिए परम मनीषी हैं | विश्व के एकमात्र बंधु महेश्वर ! आप आदि देव हैं, पुराण पुरुष हैं तथा आप ही सब कुछ हैं | वेदान्त द्वारा आप ही जानने योग्य हैं | आपकी महिमा और प्रभाव महान है | महानुभाव आपके ही नामों और गुणों का सब ओर कीर्तन करते हैं | महेश ! आप ही तीनों लोकों की सृष्टि करने वाले हैं | आप ही इनका पालन और संहार भी करते हैं | आप ही सम्पूर्ण भूतों के स्वामी हैं |"