भविष्य पुराण > ब्राह्मापर्व > अध्याय १ - २
सुमन्तु मुनि पुण: बोले – हे राजन ! अब मैं भूतसर्ग अर्थात समस्त प्रणियों की
उत्त्पति का वर्णन करता हूँ, जिसके सुनने से सभी पापों की निवृति हो जाती है और
मनुष्य परम शांति को प्राप्त करता है.
हे तात ! पूर्व काल में यह सारा संसार अंधकार से व्याप्त था, कोई पदार्थ
द्रष्टिगत नहीं होता था, अविज्ञेय था, अतर्क्य था और प्रसुप्त था. उस समय
अतीन्द्रिय और सर्वभूतमय उस परब्रह्म भगवान भास्कर ने अपने शरीर से नानाविध सृष्टि
करने की इच्छा की और सर्वप्रथम परमात्मा ने जल को उत्त्पन्न किया तथा उसमें अपने
वीर्य रूप शक्ति का आधान किया. इससे देवता, असुर, मनुष्य आदि सम्पूर्ण जगत
उत्त्पन्न हुआ. वह वीर्य जल में गिरने से अत्यंत प्रकाशमान सुवर्ण का अंड हो गया.
उस अंड के मध्य से सृष्टिकर्ता चतुर्मुख लोकपितामह ब्रह्माजी उत्पन्न हुए.