On the Diwali Night, I am sharing this Prayer of Goddess Laxmi, from the Vishnu Puran. After Samunder - Manthan, when Indra re-gained his kingdom ( Swarg ), He said this STUTI for the pleasure of Goddess Laxmi.
विष्णु पुराण > प्रथम अंश > नवम् अध्याय >
Sanskrit Version...
विष्णु पुराण > प्रथम अंश > नवम् अध्याय >
इन्द्र बोले -- सम्पूर्ण लोकों की जननी, विकसित कमल के सदृश नेत्रों वाली, भगवान विष्णु के वक्ष:स्थल में विराजमान क्मालोद्भ्वा श्रीलक्ष्मी देवी को मैं नमस्कार करता हूँ।
कमल ही जिनका निवास स्थान है, कमल ही जिनके कर - कमलों में सुशोभित हैं, तथा कमल-दल के समान ही जिनके नेत्र हैं उन कमलमुखी कमलनाभ-प्रिया श्रीकमलादेवी की मैं वन्दना करता हूँ।
हे देवि! तुम सिद्धि हो, स्वद्धा हो, स्वाहा हो, सुधा हो और त्रिलोकी को पवित्र करने वाली हो तथा तुम ही संध्या, रात्रि, पढ़ा, विभूति, मेधा, श्रद्धा और सरस्वती हो।
हे शोभने ! यज्ञ विद्या ( कर्म - काण्ड ), महाविद्या ( उपासना ) और गुह्यविद्या ( इंद्रजाल ) तुम्ही हो तथा हे देवि! आनवीक्षिकी ( तर्कविद्या ), वेदत्रयी, वार्ता (शिल्पवाणिज्य आदि ) और दण्डनीति ( राजनीति ) भी तुम्ही हो। तुम्ही ने अपने शान्त और उग्र रूपों से यह समस्त संसार व्याप्त किया हुआ है।
हे देवि! तुम्हारे बिना ओर ऐसी कौन स्त्री है जो देवदेव भगवान गदाधर के योगीजन चिन्तित सर्वयज्ञमय शरीर का आश्रय पा सके।
हे देवि! तुम्हारे छोड़ देने पर सम्पूर्ण त्रिलोकी नष्ट प्राय: हो गयी थी; अब तुम्ही ने उसे पुण: जीवनदान दिया है।
हे महाभागे ! स्त्री, पुत्र, गृह, धन, धान्य तथा सुहृद ये सब सदा आप ही के दृष्टिपात से मनुष्यों को मिलते हैं।
हे देवि! तुम्हारी कृपा दृष्टि के पात्र पुरुषों के लिए शारीरिक आरोग्य, ऐश्वर्य, शत्रु-पक्ष का नाश और सुख आदि कुछ भी दुर्लभ नहीं हैं।
तुम सम्पूर्ण लोकों की माता हो और देवदेव श्रीहरि पिता हैं। हे मात: ! तुमसे और श्रीविष्णु भगवान से सकल चराचर जगत व्याप्त है।
हे सर्वपावनी मातेश्वरी ! हमारे कोष ( खजाना ), गोष्ठ ( पशुशाला ), गृह, भोज सामग्री, शरीर और स्त्री आदि को आप कभी ना त्यागें अर्थात उनमें भरपूर रहें।
अयि विष्णु वक्ष:स्थल निवासिनि ! हमारे पुत्र, सुहृद, पशु और भूषण आदि को आप कभी न छोडें।
हे अमले ! जिन मनुष्यों को तुम छोड़ देती हो उन्हें सत्व (मानसिक बल ), सत्य, शौच और शील आदि गुण भी शीघ्र ही त्याग देते हैं।
और तुम्हारी कृपा दृष्टि होने पर गुणहीन पुरुष भी शीघ्र ही शील आदि सम्पूर्ण गुण और कुलीनता और ऐश्वर्य आदि से सम्पन्न हो जाते हैं।
हे देवि ! जिस पर तुम्हारी कृपा दृष्टि है वही प्रशंसनीय हैं, वही गुणी हैं, वही धनभाग्य हैं, वही कुलीन और बुद्धिमान हैं तथा वही शूरवीर और पराक्रमी हैं।
हे विष्णुप्रिये ! हे जगजननी ! तुम जिससे विमुख हो उसके तो शील आदि सभी गुण तुरंत अवगुणरूप हो जाते हैं।
हे देवि ! तुम्हारे गुणों का वर्णन करने में तो श्री ब्रह्मा जी की रसना भी समर्थ नहीं है। ( फिर मैं तो क्या कर सकता हूँ ? )
अत: हे कमलनयने ! अब मुझ पर प्रसन्न हों और मुझे कभी न छोडो।
Sanskrit Version...
Hi can upto 37 verse actual stotra end at 37 verse
ReplyDeleteHi can you post upto 37 verse actual stotra end at 37 verse
ReplyDeleteThank you. I was searching for this one.
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteJai Mata Di
ReplyDeleteशुभ+लाभ
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