विष्णु पुराण >>
प्रथम अंश >> बारहवां अध्याय >>
ध्रुव ने कहा -- भगवन् ! आप यदि मेरी तपस्या से संतुष्ट हैं तो मैं आपकी स्तुति करना चाहता
हूँ, आप मझे यही वर दीजिये [ जिससे मैं स्तुति कर सकूं ]. [ हे देव ! जिनकी गति
ब्रह्मा आदि वेदज्ञजन भी नही जानते; उन्हीं आपका मैं बालक कैसे स्तवन कर सकता हूँ.
किन्तु हे परम प्रभो ! आपकी भक्ति से द्रवीभूत हुआ मेरा चित आपके चरणों में स्तुति
करने में प्रवृत हो रहा है. अत: आप इसे उसके लिए बुद्धि प्रदान कीजिये.
श्री पराशरजी बोले – हे द्विजवर्य ! तब जगत्पति श्री गोविन्द ने अपने सामने हाथ जोड़े खड़े हुए उस
उत्तानपाद के पुत्र को अपने [वेदमय] शंख के अंत भाग से छू दिया. तब तो एक क्षण में
ही वह राजकुमार प्रसन्न मुख से अति विनीत हो सर्वभूताधिष्थान श्री अच्युत की
स्तुति करने लगा.