Wednesday, December 19, 2012

द्रौपदी के विवाह का रहस्य | The Secret of Draupdi's Marriage

Whoever reads MAHABHARAT should always be surprised to know that Draupdi is married to FIVE Pandavas..! However Markandeya Puran answers this question in its begining when Saint Jaimini askes the same question to Shri Markandeya Rishi. Below is the Hindi Tanslation of the same.


पक्षियों ने कहा -- ब्राह्मण ! पूर्वकाल में त्वष्टा प्रजापति के पुत्र विश्वरूप इन्द्र के हाथ से मारे गये थे, इसलिए ब्रह्महत्या ने इन्द्र को धर दबाया। इससे उनके तेज को बड़ी क्षति हुई। इस अन्याय के कारण इन्द्र का तेज धर्मराज के शरीर में प्रवेश कर गया, अत: इन्द्र निस्तेज हो गये। तदनन्तर अपने पुत्र के मारे जाने का समाचार सुनकर त्वष्टा प्रजापति को बड़ा क्रोध हुआ। उन्होंने अपने मस्तक से एक जटा उखाडकर सबको सुनते हुए यह बात कही -- ' आज देवताओं सहित तीनो लोक मेरे पराक्रम को देखे। वह खोटी बुद्धि वाला ब्रह्मघाती इन्द्र भी मेरी शक्ति का साक्षात्कार कर ले; क्योंकि उस दुष्ट ने अपने ब्राह्मणोचित कर्म में लगे हुए मेरे पुत्र का वध किया है।' यों कहकर क्रोध से आँखें लाल किये प्रजापति ने वह जटा अग्नि में होम दी। फिर तो उस होम कुण्ड से वृत्र नाम का महान असुर प्रकट हुआ, जिसके शरीर से सब ओर से आग की लपटें निकल रही थी। विशाल देह, बड़ी बड़ी दाडें कटे छ्टे कोयले के ढेर की भांति शरीर का रंग था। उस महान असुर वृत्रासुर को अपने वध केलिए उत्पन्न देख इन्द्र भय से व्याकुल हो गये

Friday, December 7, 2012

वेदों द्वारा देवी महामाया की स्तुति | Devi Mahamaya Stuti by Veda

Once on a time the eternal Deva Janârdana became tired after the terrible continuous battle for ten thousand years. After this the Lord Nârâyana seated Himself on Padmâsan (a kind of posture) in some lovely place on a level plot of ground and placing his head on the front of his bow with the bow strung and placed erect on the ground fell fast asleep. Visnu, the Lord of Ramâ, was exceedingly tired and thus he fell soon into deep sleep.At this time Indra and the other Devas, with Brahmâ and Mahesâ began a sacrifice.Then they, for the sake of success in Deva's well, went to the region of Vaikuntha to meet with the Deva Janârdana, the Lord of sacrifices. In order to wake him up, the eternal Deva Brahmâ ordered the white ants Vamrîs to cut the bow string.the Vamrî insect soon ate away the fore end of the bow that rested on the ground. Immediately the string gave way and the bow went up; the other end became free and a terrible sound took place. When the awful darkness disappeared, Brahmâ and Mahâdeva saw the disfigured
body of Visnu with its head off. 




भगवान हयग्रीव की कथा | Story of Lord Hayagreev

The Fifth Chapter of First Book of Srimad Devi Bhagwat tells us the story of Lord Hayagreeva, a lesser known incarnation of Lord Vishnu. Below is the Hindi Translation of this Chapter...

ऋषि बोले -- हे सूत जी ! आप के यह आश्चर्यजनक वचन सुन कर हम सब के मन में अत्याधिक संदेह हो रहा हे. सब के स्वामी श्री जनार्धन माधव का सिर उनके शरीर से अलग हो गया !! और उस के बाद वे हयग्रीव कहलाये गये - अश्व मुख वाले . आह ! इस से अधिक और आश्चर्यजनक क्या हो सकता हे. जिनकी वेद भी प्रशंसा करते हैं, देवता भी जिसपर निर्भर हैं, जो सभी कारणों के भी कारण हैं, आदिदेव जगन्नाथ, आह ! यह कैसे हुआ कि उनका भी सिर कट गया ! हे परम बुद्धिमान ! इस वृत्तांत का विस्टा से वर्णन कीजिये.

सूत जी बोले -- हे मुनियों, देवों के देव, परम शक्तिशाली, विष्णु के महान कृत्य को ध्यान से सुनें. एक बार अनंत देव जनार्धन दस सहस्त्र वर्षों के सतत युद्ध के उपरान्त थक गए थे. तब भगवान एक मनोरम स्थान में पद्मासन में विराजमान हो, अपना सिर एक प्रत्यंचा चड़े हुए धनुष पर रखकर सो गए. उसी समय इन्द्र तथा अन्य देवों, ब्रहमा और महेश, ने एक यज्ञ प्रारम्भ किया.
तब वे सब देवों के हित में यज्ञ की सफलता के लिए, सभी यज्ञों के स्वामी, भगवान जनार्धन के पास वैकुंठ में गए. वहाँ विष्णु को न पा कर उन्होंने ध्यान द्वारा उस स्थान को जाना जहां भगवान विष्णु विश्राम कर रहे थे. वहाँ जाकर उन्होंने देवों के देव भगवान विष्णु को योगनिद्रा में बेसुध देखा. उन्हें सोते हुए देखकर ब्रहमा, रूद्र और अन्य देवता चिंतित हो गए.